Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Brijlala Rohan

Tragedy

4.4  

Brijlala Rohan

Tragedy

'अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई'

'अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई'

2 mins
333


जिसने हल - कुदाल चलाकर अन्न उपजाई,

जो दिन रात खून- पसीना बहाकर ,

खुद भूखे पेट रहकर हमारी भूख मिटाते,

उनसे ही हमारी व्यवस्था करती क्रूरतम लड़ाई ,

हाय! हाय! अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई !     

  

उनके अनमोल फसल की कीमत भी हमारी तंत्र न चुकाती, 

लागत खाद- बीज- पानी की जरूरत की भी करते नहीं भरपाई !

हक माँगने आते जब वे खुद , तो हमारी व्यवस्था उनसे ही उलझती करती हाथापाई !              

हाय ! हाय ! अन्नदाता की व्यथा देखी न जाई , दुर्दशा उनकी मानवता की बेधती खाई ! 

                  

कर्ज तले दबे हुए, ऊपर से मौसम की निर्मम मार खाई !   

कहीं से जब आश न दिखी तो आत्महत्या की नौबत तक आई !

जो देश का पेट भरन ,आज वो खुद हैं दाने-दाने   के मोहताज ,

हमारे नजरों में वे फिर भी क्यों बने हैं पराई। 

हाय ! हाय ! अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई !     


जिनके काम पर, विकास की पुलिंदा बाँधते ,          

नाम खुद का रखने में,तुम्हें शर्म तनिक न आई ?       

जो देश के विकास के आधार हैं ,उनकी ही गाड़ी बीच अधर में अटकी ,

चारों ओर दिखती गर्त और खाई !       

हाय ! हाय ! अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई !     


व्यथा सुनकर पाषाण भी पिघल पानी बन जाई !      

छोड़ रहे तरकश से अमोघ व्यंग्यी- बाण हरिशंकर परसाई !

कलम की नम स्याही से दर्द उकेरते बृजलाला रोहन सरीखे किसानों का बेटा ,उनकी रहनुमाई !             

बहुत सो लिये अब तो जागो मेरे भाई ,अधिकार दिलाकर हम बने उनकी निर्भीक भाई ।                    

हाय! हाय ! अन्नदाता की दुर्दशा अब देखी न जाई ! 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy