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Rajesh Singh

Tragedy classics inspirational others

4  

Rajesh Singh

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अनकहा प्यार

अनकहा प्यार

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कभी कभी जिंदगी में ऐसा मुकाम भी आता है


जब कभी राह चलता शख्स भी हमे अपना बना नजर आता है।



कभी फुटपाथ पर अमरूद बेचती हुई अम्मा


तो कभी घर अखबार बेचने वाले चाचा भी अपना बना नजर आता है।



एक दिन की ये बात है मेरे अधूरे से एहसास 


थोड़े से आँशू और वो दर्दनाक एहसास



एक रोज हम घर से निकले थे जल्दी जल्दी में ना जाने कैसे मेरे जूते फटे थे



किसी तरह होटल में एस सैफ हम


लंगड़ाते हुए पहुंचे थे



देर होने से गार्ड हमे देख मुंँह बिचकाया था


फटे जूते होने की बात हाल उसे समझाया था



रास्ते में किसी तरह मैंने एक वृद्ध मोची दादा को सामने बैठा पाया था



मुझे ग्राहक के रूप देख मोची दादा ने 


कैसे मन ही मन मुस्कुराया था



दादा के हांथ कांप रहे थे बिन चश्मा बड़े मुश्किल से ताक रहे थे


 


सूई हाथ में पकड़ में आ ना रही थी


कमजोरी से छूट जा ही रही थी



यह मंजर देख मेरे आंँख में अश्क भर आया था


चारो और फटे जूते चप्पल पड़े यह कैसा स्थिति नज़र आया था



वृद्ध दादा कितने स्वाभिमानी थे धंसी आंँख झुर्रिदार चेहरे कह रहे उनकी कहानी थे



मुझे याद है उस रोज जूते सिलाई करते वक्त उनके हाथ सुई धंसा नज़र आया था



मैने भी दौड़ते हुए सामने से बैंडेज खरीद के लाया था



वृद्ध दादा ने रोते वक्त अपने बेटो के जुल्म का कैसे बात बताया था


भूखे दादा को मैने फिर बाटी चोखा खरीद के खिलाया था



मुझे मोची दादा से एक सुखद एहसास हो हुआ 


हा गया


हा लो जी मैने भी कह दिया मुझे भी प्यार हो गया 



अब मेरे रोज जूते फटने लगे थे


मेरे भी ये बहाना अब दादा तो समझने लगे थे



एक रोज मैने दादा से बोला 


आप देख नही पाते हो दादा


पर यह यातना कैसे सहते हो दादा



मैने दादा से ज़िद करके उस रोज आंँख उनका चेक कराया था


दादा ने हाथ जोड़ पैसा न होना रहने दो ऐसा हमे बताया था



अगले महीने तनख्वाह मिलने पे चश्मा दिलाने की दिलासा मैने उन्हे दिलाया था


मैने उन्हे इस बार फिर से उम्मीद की किरण दिखलाया था



उस रोज कुछ काम आई थी 


शायद गांव से हमें अम्मा बुलाई थी



उस दिन गांव से लौटने की बारी आई थी


मैने भी लौटते हुए चश्मे खरीद दादा से मिलने की इच्छा जताई थी



इस बार फिर मेरे जूते फटे थे


और हम फिर होटल से लौटे थे



रास्ते में मोची दादा का अर्थी पड़ा नजर आया था


मैने भी सामने दादा जी की श्रीमती जी को चिखते रोता पाया था



मैं घुटने के बल बैठ गया था


मेरे हाथ से आज चश्मा छिटक गया था



दादी ने आज रोते हुए मुझे उठाया था 


बेटा तेरे प्यार का सिक्रेट राज तेरे दादा ने हमे बताया था 


तेरा बाटी चोखा और फटे जूते और चश्मे वाली किस्से और तेरा अनकहा प्यार आज हमे समझ आया था.


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राजेश बनारसी बाबू

उत्तर प्रदेश वाराणसी

स्वरचित रचना

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