अनदेखा डर !
अनदेखा डर !
मुन्नी ने आज,
देर तक,
भूतों का किस्सा पढ डाला,
सीरियल भी देखना चाहा तो,
भूतों वाला ही देख डाला,
जब देखा,
भूतिया सीरियल तो,
पास में बैठी मम्मी का,
साड़ी का पल्लू ही चबा डाला,
मम्मी गुस्से में चिल्लाई ,
मुन्नी यह क्या हो रहा है,भाई,
क्यों मन तेरा इतना डर रहा है,
डर लगता है तो,
भूतों के किस्से क्यों पढती है,
फिर डर के मारे,
तेरी जान निकलती है,
खाने का भी वक्त हो गया,
खाना खाओ,
और सोने को जाओ,
नहीं मम्मी मैं नहीं जाऊंगी,
आ गया कमरे में भूत तो,
जान कैसे अकेले बचाऊंगी,
मम्मी की सब समझ में आया,
जा कमरे में साथ मुन्नी के,
मुन्नी को झटपट सुलाया,
मुन्नी को रात में,
भूतों वाला ही फिर सपना आया,
दो लंबे लंबे कद काठी के,
जिराफो ने उस को धमकाया,
मुन्नी आज तेरा,
दुनिया को अलविदा कहने का,
वक्त है आया,
चल हम सब खंडहर में जाएंगे,
फिर नए साल की पार्टी मनाएंगे,
तुझे अब हमारे साथ,
चलना और रहना होगा,
ना एक पल भी,
यहां तुझे रुकना होगा
हम तेरे पेरेंट्स बन जाएंगे,
मिल जुलकर नई,
फैमिली बनाएंगे,
चल उठ जा मुन्नी प्यारी,
हम सब आज,
यहां से उड़ जाएंगे,
मुन्नी नींद में चिल्लाई,
बिजली, जलाई,
और फिर दौड़ लगाई,
डर के मारे मुन्नी भागी,
मम्मी दौड़ पास मुन्नी के भागी,
क्या हुआ क्यों तूने दौड़ लगाई ?
मम्मी लगता है,
मेरे कमरे में,
भूतों की पूरी फैमिली हे आई,
मम्मी ने मुन्नी नींद से जगाई,
देखो कोई नहीं है। कमरे में,
मम्मी ने मुन्नी को,
भूतों के ना होने की,
तसल्ली दिलाई,
देखो मुन्नी,
अब तो सुबह होने को आई,
मुन्नी ने खुशी से फिर,
जोर -जोर से ताली बजाई।।