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Amar Tripathi

Action

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Amar Tripathi

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अमर गाथा

अमर गाथा

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घर छोड़ना ही पड़ा, आज घर के वास्ते।

रास्ते में कठिनाइयां देख सोचा लौट पड़े क्या ?

फिर दिल में ख्याल आया छोड़ो,

चल पड़े तो चल पड़े।

मां ने कहा रो कर बेटा घर पर रुक जा एक दिन ये घर है तेरे वास्ते,

मैंने कहा हंसकर मां जल्द लौट आऊंगा जा रहा हूं बस,

 घर ही के वास्ते,

जीवन के रास्ते में कठिनाइयां देख रोया हूं ज़ोर ज़ोर से,

घर लौटने पर वापस ग़म के सितम की परछाई न दिख जाए,

इसलिए तो आंखों में आंसू छुपाकर मुस्कुराया हूं ज़ोर ज़ोर से ।।

घर छोड़ना ही पड़ा आज घर के वास्ते। 

मजबूरियों का नाम हमने शौक़ रख दिया,

हर शौक़ को बदलना ही पड़ा घर के वास्ते।

जो प्यार तेरे पांव की जंजीर बनी है,

वो प्यार मेरे हाथ की लकीर बनीं है।

पानी जो मुझे रेत पर ढूंढे नहीं मिला,

उस रेत पर मेरे यार की तस्वीर मिलीं हैं।

किस्मत में क्या कोई जिंदगानी लिखी है,

या फिर किस्म में सिर्फ कहानी लिखीं हैं।

अब सूखी जुबान ज़िन्दगी से पुछने लगी,

बस प्यास ही लिखी हैं, या पानी भी लिखा हैं।

ज़िन्दगी भी अब मायूसी से पुछने लगी,

जीवन में बस ख्वाब लिखा है,

या हाथ के लकीरों में मुकम्मल खुदाई भी लिखी है।।


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