जब अबलापन को त्यागेगी
जब अबलापन को त्यागेगी
स्वयं साधना करने से ही,
कुण्डलिनी शक्ति जागेगी।
सब सज्जन नहीं जहां भर में,
सम्मान जो नारी पा लेगी।
नर पशु तो पिटकर ही देंगे,
न मिलें जो नम्र बन मांगेगी।
अधिकार मिलें रणचण्डी बन,
जब अबलापन को त्यागेगी।
मंजिल पाने को इस जग में,
निज पथ पर खुद बढ़ना होगा।
खुद शूल हटा अपने पथ को,
खुद ही प्रशस्त करना होगा।
मर्यादा तब ही रक्षित होगी ,
संकोच मोह जब त्यागेगी।
अधिकार मिलें रणचण्डी बन
जब अबलापन को त्यागेगी।
सज्जन दुर्जन इस दुनिया में
आदिकाल से ही रहते आए हैं।
कुचली और छली गई अक्सर,
धोखे अगणित नारी ने पाए हैं।
सुपात्रों को स्नेह से सिंचित कर,
दुष्टों को खुद पाठ पढ़ाएगी।
अधिकार मिलें रणचण्डी बन
जब अबलापन को त्यागेगी।
निश्चित होता है काम वही
जिसको हम खुद ही करते हैं।
जग बहुत डराता है उन सबको
बे वजह जो डरते रहते हैं।
सभ्यों के संग रख सौम्य भाव
जब नर पशुओं को संहारेगी।
अधिकार मिलें रणचण्डी बन,
जब अबलापन को त्यागेगी।