अक्स
अक्स
आईने में एक चेहरा था
छूकर उसको देखा
कोई नकाब चेहरे पर लगाएं था
'हटाओ उसे देखना चाहता हूँ तेरी सच्चाई को' मैंने कहा
हँसने लगा ' बरदाशत करने की हिम्मत रखते हो ?'
'पता नहीं, काफी अरसे से खुद को ढांक रखा है '
'रहने दो फिर, झूठा ही सही पर तुम्हारा ही अक्स हूँ,
जिंदा होने की तस्सलीके लिए काफी हूँ '
'आखिर कब तक झूठ के सहारे रहूँ ?'
'पता नहीं, शायद जब तक देह में जान फंसी है तब तक '
