अखंड दीप...!!
अखंड दीप...!!
आज अमा की
घनघोर काली रात
सब ओर चहुँ छोर
जगमगा रही दीपों की लड़ी
कहीं होती आतिशबाजी
कहीं जलती फुलझड़ी
परम्पराओं का निर्वहन करती
मैंने भी जलाया इक दीप
दीप आस का / विश्वास का / उम्मीद का और
प्रतीक्षा का / अटूट स्नेह का
इक अखंड दीप प्रज्वलित कर रखा है मन प्रांगण मध्य
तुम्हारे आने तक जलता रहेगा
जन्म मृत्यु से भी परे
प्रतीक्षा का अखंड दीप।