कैसे कह दूँ मैं हाँ...
कैसे कह दूँ मैं हाँ...
बसाना है तो
अपनी रूह में बसा
क्योंकि मेरी रूह को
तलाश है तेरी रूह की..!!
मेरी रूह तेरी रूह से करना
चाहती है एक गुफ़्तगू
चाहती है समाना तुम में
सदियों के लिए तुझमे यूँ ही ...
सुनो...
एक बार तुमने पूछा था
क्या मैं तुम्हें छू सकता हूं...???
तो सुनों...
कैसे कह दूंँ मैं हाँ...???
कैसे कह दूं..
हाँ...???
हाँ..छू सकते हो...!
कहीं तुम न समझ सके
मेरी दबी - दबी ख्वाहिशेँ
मेरी अनकही - कुंठा
तुम ही कहो ???
कैसे कह दूंँ मैं हाँ...???
अगर न जान सकें
मेरे अन कहे सवाळ
मेरे भावों की अनगुत्थी पहेली ..
तुम ही कहो..??
कैसे कह दूंँ मैं हाँ...???
अगर तुम न निकाल सके..
सरबटे मेरे ख्वाबों की
कहीं देख न सके...
थकन मेरे हौसलों की
तुम ही कहो???
कैसे कह दूं मैं हाँ...???
अगर तुम न पहुंच सके
मेरी खामोशियों तक
जो मुझसे करती हैं संवाद
मेरे दर्द के वह आंसू
जो कहीं मेरी ठनकती सी
हंसी मे है कैद
तुम ही कहो???
कैसे कह दूंँ
मैं हाँ...???
अगर तुम न छू पाए
मेरे रूह के अनछुए
स्पर्श को जिसकी मुझे
युगों युगों से है तलाश...
तुम ही कहो...??
कैसे कह दूंँ
मैं हाँ..???
यूँ तो रंग तुम्हारी
चाहत का इस कदर
चढ़ा हुआ है..
मुझ पर...
वहीं तेरा दीदार -
इबादत सा होता है ...
जहां जहां पड़ती है मेरी नजर ...
पर फिर भी सोचती हूं
कैसे कह दूंं...
मैं हां..
कैसे कह दूंं मैं हाँ !!!
कैसे कह दूंं..???
मैं हाँ...???
मैं हाँ...???
कैसे कह दूंँ ...???
मैं
हाँ...???