कलयुग की राधा
कलयुग की राधा
हो तुम कलयुग की राधा
कहीं कहाँ पूज्य तुम हो पाओगी...?
प्रेम हो तुम्हारा कितना भी
आलौकिक, नैतिक कहीं..
पर हमेशा दैहिक-पैमाने पर ही
ऐसे तुम नाप दी जाओगी...!
तुम एक मित्र ढूंढोगी कहीं
वे बन कर प्रेमी यूँ ही
देह पर घात करेंगे -वहीं
आत्मा कहीं छलनी हो जायेगी
रह कर पूर्ण समर्पित भी
रहोगी तुम राधा ही कहीं
रुक्मिणी कैसे तुम बन पाओगी...!
पुरुष तो है पुरुष ही
रहेंगे सम्माननीय ही
हमेशा वो ही
हो चाहें युग कोई भी...!
पर सोचो तुम ही..
तुम तो हो स्त्री
इसीलिए चरित्रहीन हमेशा तुम ही
तो कहीं कहलाओगी..!
होना राधा पूजनीय था कभी
पर अब होना राधा ही
अस्मिता पर एक प्रश्नचिन्ह है कहीं... l
ऐसा न हो, रहो तुम विकल्प ही
तलाश करती रह जाओ यूँ ही
अपनी प्राथमिकता ही कहीं ...!
वो जो पुरुष होकर भी
स्त्री -मित्रता- मर्यादा समझे कहीं
पोषित करें बेल -निस्वार्थ- प्रेम की
प्रेम -हृदय -अक्षुण्ण रखे वहीं
दूसरों की दूषित नजरों से भी
बचाये कहीं...!
बताओ वो मित्र कहाँ से पाओगी ?
हे राधा !! इस कलयुग में वो
कृष्ण कहाँ से लाओगी...?
नोट.. यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं.. किसी के दिल को अगर ठेस पहुंची हो तो मैं पहले से ही क्षमा प्रार्थी हूं...
यूं तो सब व्यक्ति एक जैसे नहीं होते.. पर आज के समाज का यह एक घिनौना सत्य भी है..