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Sunita Sharma

Abstract

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Sunita Sharma

Abstract

बूझो

बूझो

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कभी क्षणभंगुर पानी 

का बुलबुला बन जाता हूं 

तो कभी पानी को भी 

पानी की प्यास की 

तलब लगाता हूं ...!!


कभी थमा रहता हूं 

आंख में आंसू सा 

तो कभी लहकता हूं

धुएं सा ही आंख में...!!


 कभी दहकता हूं मन में 

 कहीं राख में दबी-चिंगारी सा 

तो कभी रेत सा फिसल

 जाता हूं हाथ से धीरे से..!!


कभी फुसफुसाता हूं 

कान में कहता हूँ 

राज की बातें तो कभी 

मौन सा ही दिल में 

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सालता हूँ टीस सा...!!


यूँ तो मैँ कभी किसी 

का नहीं हूं पर सबकी  

जिंदगी में बहुत खास हूं ...!!


 यूं तो मैं कभी पलट 

कर नहीं देखता

 पर मेरे वार से कोई 

बच भी नहीं सकता..!!


है फितरत मेरी आदमी 

सी बदलने की है..

पर तुम्हें अच्छे बुरे की 

पहचान कराने आता हूं ..!!


बहुत ही दबे पांव..

कभी-भी-कहीं-भी -कैसे -भी

पहुंच जाता हूं..

जी हाँ मैं वही , तुम्हारा वक्त ...!!

वक़्त...!!!


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