अश्क..
अश्क..
अश्क बेवजह न तुम ये गंवाया करो,
राज़ गहरे न यूँ सबको बताया करो ।
मौन रहकर क्यों देते हो हवा ज़ख्मों को,
मुस्कुरा कर बातें दिल की सुनाया करो।
अश्क बहते रहे तो क्या होगा हासिल,
आंखों को न ऐसे बोझिल बनाया करो ।
चेहरे पे आपके हसीन लगती हैं शोखियां,
उलझी लटों को न खुद से सुलझाया करो ।
खुशी में शामिल करो सभी को चाहे फिर ,
ग़म हों अगर पास तो हमें ही बुलाया करो ।