“अकेला”
“अकेला”
क्यों किसी को
मैं बाध्य करूँ
क्यों किसी को
अपना विचार थोपूँ ?
सब स्वतंत्र हैं
जो जी चाहे कहें
अपनी बातों को
सबके सामने रखें !
शिष्टता का ध्यान हो
कटुता से दूर रहो
मृदुलता से बात कहो
पर सदा कहते रहो !
कोई पढ़े आपको या
नज़रअंदाज करे
मान्यता दे ना दे
आपको इनकार करे !
पांडव क्या कौरव से
युद्ध में हार गया था
शकुनि के प्रपंचों से
कोई निराश हुआ था ?
कलम के हथियारों से
विचार लिख के छोड़ेंगे
जुल्म अत्याचार के
कुरीतियों को तोड़ेंगे !
साथ कोई ना चले
हम चलते जाएंगे
आसमां पे तिरंगा
शान से फहराएंगे !!
