तुम्हारे तरफ बेवजह खींच ले जाती है तुम्हारे तरफ बेवजह खींच ले जाती है
पक्षी को सीमाओं पर, भला किसने रोका ? कवि के कल्पनाओं को भला किसने टोका ? पक्षी को सीमाओं पर, भला किसने रोका ? कवि के कल्पनाओं को भला किसने टोका ?
प्रेरणा का भाव जग गया तो हिमालय भी शीश झुकाने को बाध्य किया जा सकता है, प्रेरणा का भाव जग गया तो हिमालय भी शीश झुकाने को बाध्य किया जा सकता है,