सबको जीने दो
सबको जीने दो


झरना के गति को भला कौन रोक सकता है ?
वायु के गति के सामने किसी का नहीं चलता है !!
प्रकृति सदा अपने चक्रों में बदलती रहती है !
वर्षा को जहां बरसना है, वहां बरस कर रहती है !!
प्रलय के हुंकार से, सारी धरा कंपित होती हैं !
कहीं धूप कहीं छांव तो, कभी आग जलती है !!
पक्षी को सीमाओं पर, भला किसने रोका ?
कवि के कल्पनाओं को भला किसने टोका ?
हम स्वच्छंद सदा ही, रहना चाहते हैं !
अपनी भावना को, लेखों में दरशाते हैं !!
है अधिकार आपको भी, कुछ कहने का !
पर बाध्य नहीं कर सकते, किसी को कुछ लिखने का !!
आप रहें स्वतंत्र और सबको, स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाएँ !
सबको शालीनता के बोलों से, कानों में अमृत बरसाएँ !!