अजन्मा
अजन्मा
तुम कुछ दिन सपना बन कर आए थे,
कुछ दिन डिजिटल चित्रों में मुस्काए थे।
छोटे छोटे से अंग तुम्हारे फड़के थे।
कुछ दिन धड़कन बन कर तुम धड़के थे,
पर तुम्हें जन्म का सरकारी प्रमाण पत्र नहीं मिला,
समय ने किसी नाम से तुम्हें पुकारा भी नहीं।
पग तुम्हारे धरा पर पद चिन्ह बना न सके,
हवा ने सांस बन कर तुम्हें संवारा भी नही।।
ठीक है, जाओ अब से
‘आज़ाद’ तुम भी हुए मेरे नाम से।

