ऐसी भी कहानी
ऐसी भी कहानी
अब तू जब भी याद आता है,
सॉंसों की चुभन से मेरा कलेजा मुंह को आता है,
धुंधला-धुंधला सा सब आता है नज़र,
दर्द का सैलाब आंखों में उतर आता है,
चैन-ओ-सुकून कहते किसे हैं,
उन पलों में मेरा एक जगह बैठना भी मुश्किल हो जाता है,
भटकती हूँ ना जाने किसकी तलाश में,
ना तू दिखता है मुझे, ना मेरा अस्तित्व मुझे मिल पाता है,
मत याद आया कर ऐसे तू..
मेरा हर पल मेरे लिए बोझिल हो जाता है,
तू जानता नहीं हैं मगर..
मेरा ये हाल अब कोई देख नहीं पाता है,
रुह को ले तो गया है तू मेरी..
तुझे एहसास भी नहीं है कैसे मेरा देह, बिन रुह के खुद को संभलता है,
तू क्यों याद आता है?
मत याद आया कर..
मेरा जीना अब मेरे ऐसे हालातों पर आजकल उंगली उठाता है

