ऐसा भी क्या नाता तुमसे
ऐसा भी क्या नाता तुमसे
ऐसा भी क्या नाता तुमसे, ऐसा भी क्या अपनापन ।
एक झलक भी देखूँ तुमको, तो जी उठता है जीवन ।
सोंच सोच कर तुमको हर पल, जाने क्या हो जाता हूँ ।
खुद को खुद में, खुद से खुद को, उलझाता- सुलझाता हूँ ।
कभी अकेले में यादों के, सँग-सँग ही बह जाता हूँ ।
कभी स्वयं को खो देता हूँ, कभी स्वयं रह जाता हूँ ।
और तुम्हे खोने के डर से, तकिए को धो देता हूँ ।
चित्र तुम्हारे देख-देख कर, ऐसे भी रो देता हूँ ।
कैसे तुमसे बात करूँ, यह सोच बहाने गढ़ता हूँ ।
सब कुछ पढ़ना भूल गया, बस तुमको ही अब पढ़ता हूँ ।
कभी सोचता हूँ सब कह दूँ, जो कुछ भी दिल कहता है ।
किन्तु कहीं तुम समझ न पायी, इसका भी डर रहता है ।
बस इतना सा समझ सका हूँ, दिल हूँ मैं तुम स्पंदन हो ।
तन मेरा तो साँसें हो तुम, विष मैं हूँ तुम चंदन हो ।
यदि जन्मों का साथ नहीं तो, तुम बिन रहना मुश्किल क्यों ।
अगर साथ जन्मों का है तो, सब कुछ कहना मुश्किल क्यों...?
अब तुम बिन रहने का ऐसे, विष को पीना मुश्किल है ।
तुम बिन मरना तो सम्भव है, लेकिन जीना मुश्किल है ।