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Rahul Dwivedi 'Smit'

Romance

5.0  

Rahul Dwivedi 'Smit'

Romance

ऐसा भी क्या नाता तुमसे

ऐसा भी क्या नाता तुमसे

1 min
460


ऐसा भी क्या नाता तुमसे, ऐसा भी क्या अपनापन ।

एक झलक भी देखूँ तुमको, तो जी उठता है जीवन ।


सोंच सोच कर तुमको हर पल, जाने क्या हो जाता हूँ ।

खुद को खुद में, खुद से खुद को, उलझाता- सुलझाता हूँ ।


कभी अकेले में यादों के, सँग-सँग ही बह जाता हूँ ।

कभी स्वयं को खो देता हूँ, कभी स्वयं रह जाता हूँ ।


और तुम्हे खोने के डर से, तकिए को धो देता हूँ ।

चित्र तुम्हारे देख-देख कर, ऐसे भी रो देता हूँ ।


कैसे तुमसे बात करूँ, यह सोच बहाने गढ़ता हूँ ।

सब कुछ पढ़ना भूल गया, बस तुमको ही अब पढ़ता हूँ ।


कभी सोचता हूँ सब कह दूँ, जो कुछ भी दिल कहता है ।

किन्तु कहीं तुम समझ न पायी, इसका भी डर रहता है ।


बस इतना सा समझ सका हूँ, दिल हूँ मैं तुम स्पंदन हो ।

तन मेरा तो साँसें हो तुम, विष मैं हूँ तुम चंदन हो ।


यदि जन्मों का साथ नहीं तो, तुम बिन रहना मुश्किल क्यों ।

अगर साथ जन्मों का है तो, सब कुछ कहना मुश्किल क्यों...?


अब तुम बिन रहने का ऐसे, विष को पीना मुश्किल है ।

तुम बिन मरना तो सम्भव है, लेकिन जीना मुश्किल है ।



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