अहसास: मुलाकात
अहसास: मुलाकात
एक अरसे के बाद
उस शाम हम साथ थे
लंबा था रास्ता हाथों मे हाथ थे
थे कुछ नग़मे नए पुराने
बातें थी कुछ
कुछ थे अनकहे फ़साने
आसमा सिंदूरी से
नीला हो रहा था
चाँद जाने क्यूँ
आज पीला हो रहा था
वो शाम थी कुछ ऐसी
जो शायद ठहर गयी है
जो छुवन थी वो हाथों में रह गयी है।
बातें भी इतनी थी
कि कहनी रह गयी है
ये क्या प्यास है जो
मिलने से और बढ़ जाती है
कैसी है कशिश जो
कही नहीं जाती है
शायद यही प्यार है
जो पूरा नहीं होता
पर संपूर्ण होता है

