अहम् मुद्दा
अहम् मुद्दा


बात-बात पर क्यूँ निकल पड़ते हो
धर्म को अपना मोहरा बनाते
मुद्दों की भी अहमियत होनी चाहिए
क्यूँ न ज़िक्र होता है, न फ़िक्र होती है
यायावर से जो मारे-मारे फिरते है
काम की तलाश में उन लड़कों की
मोर्चे की आबरू रह जाए
मिल जाए हवा जो बेरोजगारों को
सियासत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की
पूछो उन लड़कों को पास बिठाकर
कितना तकलीफ़ देह होता है मंज़र
डिग्री तो होती है जिनके हाथ पर
जेब में खनकती फूटी कौड़ी नहीं होती है
पिता के आगे हाथ फैलाने में
आत्मा उनकी मरती है
कोई तो आवाज़ उठाओ
कोई तो मोर्चे निकालो
दिलवाओ उनको भी इंसाफ़ की झंडी
टिकी है जिनके कंधों पर पूरे परिवार के
जिम्मेदारियों की गठरी।