अगर मैं खामोश ना रहती
अगर मैं खामोश ना रहती
अगर मैं खामोश ना रहती तो क्या करती
औरत हूँ जब तक बेटी हूँ माँ बाप का घर अपना है
जब तक कुछ कमा कर अपना घर ना ले सके तो
खामोश ही रहना पड़ेगा,
माँ बाप भाई भाभी हर किसी की सुननी पड़ेगी,
अगर मैं खामोश ना रहती तो क्या करती
औरत हूँ पति के घर जाते ही अपना
घर कैसे हो जाएगा वो
सास ससुर जिस घर के मालिक है उस पर
अपना हक कैसे जताए
घर के हर काम करो फिर सेवा करो और खामोश रहो,
बेटी बनकर जन्म लेना भी एक अभिशाप ही तो है,
जिस घर में जन्म हुआ उसमें समझे सब पराई मुझे,
पति के घर को अपना कह सके इतना अधिकार नहीं,
खामोश ही रहो हर पल बस ये ही किस्मत औरत की,
बदल चुका है अब दौर जिंदगी का सतयुग नहीं कलयुग है,
आज की औरत इतनी पढ़ी लिखी की किसी के भरोसे ना रहे,
एक क्या वो चार चार घर बना सकती अपनी ही मेहनत की
कमाई से,
अब नहीं मैं खामोश रहूंगी अपनी लड़ाई मैं खुद लड़ूँगी ।