चिताओं से निकलती आवाज़ें
चिताओं से निकलती आवाज़ें
शहीदों की चिताओं से भी
निकलती हैं आवाजें।
चीख चीख कर कहने लगती
उस युद्ध की गाथाएं।
बड़ा गर्व था उसको जब
चुना गया सेना के लिए
भर गया था आत्मविश्वास
साथ में भरी गयीं बन्दूकें।
सरहद पर अपनों की ख़ातिर
दागी गयी थी बारूद ।
हाथ खूनी घाव खूनी
हवा और आसमान भी खूनी।
हर मंज़र था कातिलाना
हर हलक थी सूनी।
लूटा विश्वास लुटी ज़िन्दगी
हाथ में बस बर्बादी।
कहीं कोई महफ़िल नहीं,
अब तो शमशान भई आबादी।
नफ़रत की आंधी ले गयी
संग प्यार की बहार।
अकड़ में अकड़े हैं हम
न झुकने को तैयार।
देख लो बन्धुओं समझ लो
हम तो चिर निद्रा में डूबे हैं।
तुम तो जागो सोने वालों
मलकर अपनी आँखें खोलो।
कुछ नहीं इस जंग की लड़ाई में
हर तरफ सिर्फ लाचारी है।
मेरा तुम्हारा कुछ नहीं
यहां सब व्यापारी हैं।
कुछ दिन का ये जीवन है
सुकून से बिता दो।
पल पल यूँ ही कट जाएगा
प्रेम को फैला दो।
मिलजुल कर रहो जीवन में
बगिया अपनी संवार लो।
प्यार दो सबको और
बदले में प्यार लो।
बस इतनी सी है आखिरी इच्छा
बस इतनी सी गुज़ारिशें।
शहीदों की चिताओं से भी
निकलती हैं आवाजें।