STORYMIRROR

Roli Abhilasha

Tragedy

4  

Roli Abhilasha

Tragedy

दर्द है मगर स्वाभिमान है

दर्द है मगर स्वाभिमान है

1 min
443

सम्मान के सूत में लिपटा दर्द

वही आंखें जानती हैं जिनसे बहता है

आख़िरी विदाई देते वक़्त

भूल जाना पड़ता है

कि क्या खो रहे हो,


याद रखनी है तो बस

इक्कीस तोपों की सलामी की आवाजें

पत्थर रखना पड़ता है कलेजे पर

सुखाना पड़ता है आंखों का पानी

मारना पड़ता है स्नेह को,


जो चला जाता है उसकी याद में

रो तो नहीं सकते पर

ख़ुद का कत्ल तो कर सकते हैं न !


शहीद की विधवा नहीं रोती

शहीद की मां नहीं रोती

शहीद की बहन की भी आंखों में

कैसे आ सकते हैं आंसू,


पिता तो शायद पत्थर है ही...

और शहीद के बच्चे

जब याद आता है उनका दर्द

तब कोई तसल्ली

मुंह में निवाला नहीं जाने देती।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy