प्रतिशोध
प्रतिशोध


नरभक्षी थे पिशाच थे वो,
जो मेरी इज़्ज़त को छलनी कर गये।
कोई पूछे क्या मिला उन्हे,
ऐसी घिनौनी करनी कर गये।
कृत्य किया यह क्या कम था,
अंग अंग प्रहार किया।
लड़ती रही झूझती रही उन भेड़ियों से,
पर फिर भी हार गई,
इतना निर्मम अत्याचार किया।
खून रिसता रहा मेरे जिस्म से,
पर वो दरिंदों को दया न आई।
माँ के बेटे बहन के भाई,
फिर भी तुम को हया ना आई।
बहुत लड़ी मैं आखिरी क्षण तक,
पर आखिर जीवन त्याग दिया।
बिलखती रही माँ बहन,
जब पिता ने दाग दिया।
शरीर तो अग्नि की भेंट चढ़ा,
रूह को मेरी चैन ना था।
वो दरिन्दे आज़ाद घूमे,
मुझ को यह मंज़ूर न था।
यातनाएं देकर सताऊँगी,
तड़पा तड़पा कर मारूंगी।
जब तक जुर्म ना कबूल करते,
मैं हार ना मानूंगी।
जब मिलेगा तुम को मृत्युदण्ड,
हर बेटी को इंसाफ़ मिलेगा।
तुम्हारा हश्र देखेगा संसार,
कोई भी ना ऐसा पाप करेगा।