अफ़साना
अफ़साना
ये तेरा तसव्वुर है या मेरा ही अफ़साना है,
झरने सा दिखता है जो सैलाब अश्कों का है !
जो मुझ पर गुज़रती है उसने कब है जाना,
अपनी ही मुसीबत अपना ही अफ़साना है!
आज कुछ ग़मज़दा दिखती हैं उसकी आँखें,
आँखों में मेरा ही धुंधला अक्स दिखता हैं !
ये उल्फ़त नहीं आसाँ इतना तो जान लीजिए,
आग लगाकर ख़ुद को ख़ुद ही जल जाना है !
भला वो परेशाँ थीं या हम ख़फ़ा थे उनसे,
कल तक वो मरती थी आज हम अलहदा हैं !
चुराकर तेरे लबों से गुलाबी रंगत में गुलाब,
महक रहे फूलों के सरताज बन चमन में है !
कौन हैं वो जिसने अपनी ज़ुल्फ़ों को बिखेरा,
फिज़ा को बदन की महक मदहोश करती है !

