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Govind Narayan Sharma

Romance

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Govind Narayan Sharma

Romance

अफ़साना

अफ़साना

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ये तेरा तसव्वुर है या मेरा ही अफ़साना है, 

झरने सा दिखता है जो सैलाब अश्कों का है !


जो मुझ पर गुज़रती है उसने कब है जाना, 

अपनी ही मुसीबत अपना ही अफ़साना है! 


आज कुछ ग़मज़दा दिखती हैं उसकी आँखें,

आँखों में मेरा ही धुंधला अक्स दिखता हैं ! 


ये उल्फ़त नहीं आसाँ इतना तो जान लीजिए,

आग लगाकर ख़ुद को ख़ुद ही जल जाना है ! 


भला वो परेशाँ थीं या हम ख़फ़ा थे उनसे, 

कल तक वो मरती थी आज हम अलहदा हैं ! 


चुराकर तेरे लबों से गुलाबी रंगत में गुलाब, 

महक रहे फूलों के सरताज बन चमन में है !


कौन हैं वो जिसने अपनी ज़ुल्फ़ों को बिखेरा,

फिज़ा को बदन की महक मदहोश करती है !



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