अधूरी समझ
अधूरी समझ
कहीं से भी
कुछ भी न पूरी हुई
अधूरी रही अधूरी रही।
मैं आशा की लड़ियाँ पिरोती रही
इक दीया सी भी
ज्योति न मुझको मिली।
मगर फिर भी
मन में ये दुविधा रही
थी मुझ में कमी या जमाने में थी,
जो मैंने न समझी
और अधूरी रही।।
कहीं से भी
कुछ भी न पूरी हुई
अधूरी रही अधूरी रही।
मैं आशा की लड़ियाँ पिरोती रही
इक दीया सी भी
ज्योति न मुझको मिली।
मगर फिर भी
मन में ये दुविधा रही
थी मुझ में कमी या जमाने में थी,
जो मैंने न समझी
और अधूरी रही।।