पनाहें मेरी कोशिशों के।।।।।।
मैं आशा की लड़ियाँ पिरोती रही इक दीया सी भी ज्योति न मुझको मिली। मैं आशा की लड़ियाँ पिरोती रही इक दीया सी भी ज्योति न मुझको मिली।
आंधियां भांप जाना तो आसान था मैंने इन्सान समझने में बड़ी भूल की.... आंधियां भांप जाना तो आसान था मैंने इन्सान समझने में बड़ी भूल की....
रास्तों में छोड़ कर रख गये पत्थर समझ मेरी कोशिशें ही है आज मैं जो कुछ भी हूँ रास्तों में छोड़ कर रख गये पत्थर समझ मेरी कोशिशें ही है आज मैं जो कुछ भी हूँ
मैं रब से रोज़ करूँ मिन्नते जब भी हार जाऊँ खुद से याद आती है जब भी तेरी मैं रब से रोज़ करूँ मिन्नते जब भी हार जाऊँ खुद से याद आती है जब भी तेरी
अर्पण हो जाऊं मालाओं में ऐसे प्रभात की पुष्प बनूं।। अर्पण हो जाऊं मालाओं में ऐसे प्रभात की पुष्प बनूं।।