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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

अधूरी कल्पना

अधूरी कल्पना

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उसको बुनता रहा हूँ सदा गीत में

शब्द से जो बनी हैं मेरी अल्पना

पा सका न तुझे तो न पूरा हुआ

 मैं अधूरा अधूरी हैं मेरी कल्पना


प्यार दुनिया मे दुनिया हैं प्यार में

प्यार ही तो यथावत हैं संसार में

प्यार में हार हो तो सोक से हारिये 

जीत हैं यह छुपी प्यार की हार में


प्यार सुन्दर हैं शिव अक्षर भी हैं

प्यार के ही लिए सारा जग हैं बना

पा सका न तुझे तो न पूरा हुआ 

मैं अधूरा अधूरी हैं मेरी कल्पना 


प्यार का पथ हैं तलवार की धार पर

ये समन्दर हैं इसको तैर कर पार कर

भट्टी में जो लगा उस लोह खण्ड की तरह


प्यार करना हैं तो खुद को तैयार कर

प्यार की जब मिलेगी मन्जिल तुझे

प्यार के पथ पर रस्ता तू खुद ही बना

मैं अधूरा अधूरी हैं मेरी कल्पना।


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