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Shahana Parveen

Tragedy

4  

Shahana Parveen

Tragedy

अधूरे से कुछ पल

अधूरे से कुछ पल

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अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे,

अधूरे ख्वाबों से लिपटे रहते थे जो कभी।

झूठी उम्मीद जगाते थे अक्सर मन में मेरे,

अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे।।


तमाम उम्र करती रही जिनसे प्यार मैं,

कभी ना हो पाया उन्हें अहसास ये।

नहीं याद करना चाहती फिर बातें पुरानी,

अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे।।


रात के अंधेरों में गुमसुम सी मैं बैठी रहती,

उसके आने की घड़ियाँ मैं गिनती रहती।

वह नहीं आता पर आती उसकी बेरुखी,

अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे।


तन्हाइयाँ धीरे- धीरे मेरे करीब आ रही थीं,

खामोशियाँ मुझे अपनी सहेली बना रही थी।

वक्त भी अब तो हँसने लगा था मुझ पर,

अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे।


क्यों करूँ अब उन अधूरे पलो का इंतज़ार?

जिनसे नहीं मुझे अब रहा कोई सरोकार।

अंधेरी गलियों से मैं बाहर निकल आई हूँ

अधूरे से कुछ पल मैं छोड़ आई पीछे।।



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