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Shahana Parveen

Abstract

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Shahana Parveen

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उन्मुक्त

उन्मुक्त

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काश हम होते उन्मुक्त परिंदे,

जहाँ करता मन चले जाते।


न होती बंदिशे किसी धर्म की,

हर धर्म में भगवान के दर्शन पाते।


उन्मुक्तता होती सबको पसंद,

हर कोई चाहता उन्मुक्त होना।

जीवन जीते निर्भरता के साथ,

मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे 

और चर्च का प्रसाद खाते।


ना लड़ते, ना झगड़ते, 

होता परिंदो सा प्रेम सब में।

आँसू होते सबके एक जैसे,

हर मज़हब को गले लगाते।


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