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संजय असवाल "नूतन"

Romance

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संजय असवाल "नूतन"

Romance

अधूरा प्रेम...!

अधूरा प्रेम...!

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बेशक प्रेम 

अधूरा रह गया हो मेरा,

पर ये बरसता है

तुम पर अब भी फुहार बनकर,

नफरतों के फासले 

बेशक तुमने बना लिए हो

हम दोनों के बीच इस कदर,

पर वो बेमानी है 

उस पतझड़ कि तरह

जो कब का बिन बताए विदा ले चुका है,

प्रेम थका मांदा 

अब पस्त हो चुका है

राह तुम्हारी देखते देखते,

चाहत भी अब विकल हो चुकी है

जीवन में मेरे

तुम्हारी याद बनकर,

हर लम्हा थम चुका हैं 

थक गया हूं बैठ कर

उन हंसीन लम्हों में,

जो गुजरे थे 

कभी हम दोनों के संग,

और मैं 

गिन रहा हूं अब

चंद सांसे

अपने अंतिम प्रेम की खातिर.....!

उस सूखे दरख़्त की तरह...!

जो उजड़ रहा है 

सूख रहा 

उन पंखुड़ियों की तरह

किताबों के पन्नों में....!

अधूरे प्रेम की

खातिर......!



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