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Samrat Singh

Romance

4.5  

Samrat Singh

Romance

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा हुआ

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा हुआ

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उंगलियों मे उंगलियां फस लगीं कसमसाने

समर्पण भी उलाहना पर आमादा हुआ

हमको प्रेम समर्पण था पहले भी

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा हुआ

चंचल नयन चुप खामोश थे


कहीं गुम थे या फिर मदहोश थे

कसमसाया बदन एक छुवन से मेरे

जिस्म सिकुड़ कर के आधा हुआ

हमको प्रेम समर्पण था पहले भी

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा हुआ


कामनाएँ भड़कती रहीं रात भर

साँस सासों पे दोनों के भारी रहीं

दूरियां मिट रहीं थी स्वयं से स्वयं कि

नींद नयनों में दोनों के आधा रहा


हमको प्रेम समर्पण था पहले भी

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा रहा

जान पहचान में हम नादान थे

दो जिश्म थे और एक जान थे

एक अनोखे मिलन की कहानी नयी


परिचय हमारा फिर भी आधा रहा

हमको प्रेम समर्पण था पहले भी

अबकी बारी समर्पण कुछ ज्यादा रहा।।


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