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Samrat Singh

Abstract Others

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Samrat Singh

Abstract Others

तुम्हारी गली आता रहा

तुम्हारी गली आता रहा

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आँखों में आंसू देकर चले गए तुम

ये जमाना भी मुझको रुलाता रहा

मुझको मालूम था कुछ न होगा वहाँ

फिर भी मैं तुम्हारी गली आता रहा।


वो सपने कभी जो न अपने हुए

अपने लोग भी पल में पराए हुए

जख्म जितने दिए थे सभी को संभाले

अपने दिल को मैं रोज मनाता रहा


जानबूझ के मैं सबसे हारता गया

लोग समझे कि मुझको हारते रहे

सारे कसमें वादे उसने तोड़े मुझसे

मैं एक एक वादा उससे निभाता रहा


लोग समझे मुझे ना समझ ही सही

नासमझ में समझ मुझको आता रहा

खेत खलिहान मुझको बुलाते रहे

मैं दूर से ही उनको हाथ दिखता रहा


एक शब्द उसने ना कहे जाते हुए

बिन कहे मैं उसको दोहराता रहा

मजबूरियां बता सब संग छोड़ते

मजबूरियों के साथ मैं निभाता रहा


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