STORYMIRROR

Samrat Singh

Abstract

3  

Samrat Singh

Abstract

मिलना चाहिए

मिलना चाहिए

1 min
244

दिलों को अब मिलना चाहिए

प्यार के फूल खिलना चाहिए


वो कशमकश में क्यों जिये भला

बंधनो से उसे निकलना चाहिए


हाथों में पत्थर है उसके पर यहाँ

शीशे का मकाँ भी मिलना चाहिए


सासों में उसके समाने की जिद है

पर साँसे उससे तो मिलना चाहिए


जन्नत में जाकर क्या होगा क्या पता

पहले घर से तो निकलना चाहिए


सौंप दें हम उसको आबरू अपनी

पर उसे भी तो ये संभालना चाहिए


न शिकवा न गिला हो हमारे दरमियां

दिल को ऐसे भी मिलना चाहिए


समय के अनुबंध न हों बीच अपने

इश्क़ में इतना तो फिसलना चाहिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract