अब तो हमारी जान बक्श दे
अब तो हमारी जान बक्श दे
तू घर का ना घाट का
गुफा का ना समाज का
ना अच्छा इंसान बना
ना अच्छा दोस्त बना
तू अपनों से दूर भाग आया
सुकून की जिंदगी जी न पाया
ख़ुशी तो बिखरी थी इधर उधर
तू अज्ञान से दर बदर ढूंढ़ता रहा
तू हमेशा अंतमुग्ध रहा
चाटुकार से प्रसन्न हुवा
तेरा हर दांव नाकाम रहा
सोच तूने क्या खोया पाया ?
छोड़ अहंकार प्यारे अब तो
वर्ना नहीं बचेगी मानवजाति
तो क्या कंकर पत्थर , पेड़ पौधे
तेरा गुणगान गायेंगे सोच ले
कुछ हटके कर दिखाने के ख़ातिर
तूने सब की मेहनत पे पानी फेरा बेशक
तानाशाही से लेकर तू बना सरफिरा
अब तो हमारी जान बक्श दे दोस्त।