क्या ऐसा हो सकता हैं ?
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
क्या ऐसा हो सकता है ?
सवाल ऐसे हो जो सबके हित में हो
सबको खुशी मिले और कल्याण हो
रोटी , कपड़ा , मकान, अच्छी शिक्षा
बेहतर जिंदगी के वो सारे संसाधन
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
सिर्फ इंसानियत की बात हो
जात,धर्म , प्रदेश ,भाषा समान हो
आमिर , गरीब ,भेदाभेद ना हो
सिर्फ प्यार , मोहब्बत दुलार हो
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
अगर हाँ तो कब ? कैसे ?
क्या किसके पास जवाब है
ऐसा क्या हैं जो हम मजबूर
बेबस ,हताश असहाय हैं ?
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
दुनिया में जितने भी लोग
नेकी , ईमानदारी से जीना चाहते हैं
वह सब एक साथ नहीं आ सकते ?
अगर नहीं तो आखिर क्यों ?
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
हम खुद को सवाल पूछे
क्या हम सचमुच आजाद हैं ?
अगर नहीं तो आजादी नहीं चाहते ?
क्यों हमें गुलामी की आदत पड़ी हैं ?
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
सत्य - असत्य , भला - बुरा
सबकुछ समज़कर मौन ही रहेंगे
या फिर जमीर जिन्दा होगा तो लड़ेंगे
अपने हक़ और देश की उन्नति के लिए
क्या ऐसा हो सकता हैं ?
ना कोई भूखा रहेगा ना
कोई बेसहारा , बेबस होगा
सबका साथ सबका विकास
सबका विश्वास सही मायने में।