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Abasaheb Mhaske

Abstract Others

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Abasaheb Mhaske

Abstract Others

मैं समय हूँ ...

मैं समय हूँ ...

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मैं समय हूँ, विशुद्ध निरामय हूँ

कल भी था और कल भी रहूँगा

मेरी कीमत जो भी जानते हैं 

वही अपनी मंजिल पाते हैं 


मैं नहीं जानता आगे क्या होगा ?

लेकिन क्या हुआ ? कैसे हुआ, क्यों हुआ ?

मुझ में सब राज दफ़न तो है

मगर मैं कुछ कह नहीं सकता ना


मैं सब का दुःख दर्द महसूस करता हूँ

खुशी से झूम भी उठता हूँ बेशक

मैं रोता कभी हँसता हूँ समयानुसार

मेरा होना भी न होने के बराबर


मैंने बहुत सी लड़ाइयां देखी, योद्धा भी

पुत्र प्रेम में अँधा धृतराष्ट्र भी देखा

हताश अन्धी राजगद्दी पर निष्ठांवाले भीष्म

धर्मराज, अलोकिक प्रतिभावाला कृष्ण भी


दुर्योधन देखा, रावण और अश्वथामा भी

हिटलर, मुसोलिनी, सद्दाम, अलेक्ज़ैंडर भी

रामायण में सीतामाई की अग्निपरीक्षा

और महाभारत में द्रोपदी चीरहरण भी


मैं समय हूँ लेकिन मेरा अस्तित्व केवल इतना सा

चराचर सृष्टि का बस एक छोटा सा हिस्सा

ख़ुशी से पागल भी होता हूँ सच्चाई को देखकर

दुःख दर्द से अकेले में फुट फुटकर रोता हूँ अक्सर


मैंने बरबादी के वो मंजर भी देखे और

सुवर्ण युग के दयाशील राजा महाराजा भी 

बड़े बड़े तानाशाह और उनका हश्र भी देखा

मैं आहत हूँ इंसान इतिहास से क्यों सीखता नहीं ?

क्यों है देखता हैं मुंगेरीलाल के सुनहरे सपने


क्यों हर कोई अपने लालच, अपने दायरे में बंधा हुआ

परम ज्ञानी विदुर हो या पुत्र प्रेम में अँधा धृतराष्ट्र

राज गद्दी से केवल बंधा ,बेबस , हताश भीष्म पितामह

द्रोपदी का चीरहरण देखनेवाले वो सब रथी-महारथी


आखिर कब तक बेकसूर बेमौत मारा जायेगा ?

गरीब रोटी कपड़ा, मकान, शिक्षा से वंचित रहेगा

सदियों से यह चलता आया हैं, कब तक चलेगा ?

महाभारत तब भी था और आज भी हैं, कल भी रहेगा


धर्म का अधर्म से, अच्छाई का बुराई से

झगड़ा यह कभी ख़त्म न हुआ हैं न कभी होगा

मैं समय हूँ संजय बनकर देखता हूँ महाभारत

तब भी था और आज इसी वक्त भी



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