अब के बरस होली

अब के बरस होली

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क्या गुल खिलाऐगी अब के बरस होली

जिस रंग न रंगे कोई न जाऐ खाली।

फाग में विरोधी भी हो जाऐ हमजोली

फिर क्या रंग बिखरे या एकरंग थाली।


ये रंगों का पर्व जोड़ता है हर टोली

फिर क्यों हैं हुड़दंग ,हल्ला और गाली।

मिलन के त्यौहार में कैसी हो गई बोली

लड़खड़ाती जुबान ले हरकत डाली डाली।


पैमाने छलक रहे मयखाने माफिक है खोली

सब जमा है बर्फ नमकीन डिश टखना वाली।

सौहार्द खो गया बवंडर सी अब ये होली

क्या थी होली, क्या हो ली, फिर भी हैप्पी वाली।।


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