अब जनम लो
अब जनम लो
चाँद पे ग्रहण लगा,
ग्रहण लगा था सूर्य पे।
राज्य सारा जल रहा,
शिकन नहीं हुज़ूर पे ।।
सुना था कोई नीरो था,
बजा रहा था बांसुरी।
फ़रक कहाँ था पड़ रहा
सुरीली हो या बेसुरी ।।
था बात जिनका काम,
वो बातें बनाने लगे।
ख़बरनवीस यूँ गज़ब,
किस्से सुनाने लगे ।।
हवा किधर को जायेगी,
ये तय किया जाने लगा।
सोच सकते हैं क्या,
ये कोई बतलाने लगा ।।
उधर कई फ़कीर थे,
मगर वो बहुत अमीर थे।
इधर थे कुछ हारे थके,
बिके हुए ज़मीर थे ।।
मगर यदा यदा का पाठ,
किसी किसी को याद है।
अब जनम तो लो श्री किशन,
यही मेरी फ़रियाद है ।।
