अब भी वहीं खड़ा हूं मैं।
अब भी वहीं खड़ा हूं मैं।
एक तुम हो,
जो बेहयाई में भी खुश हो
अपना अलग जहां बसा के,
जहां तुम्हारी चाहत,
तुम्हारी हसरतें
सिर्फ तुम को ही सजदा करेंगी,
बेतकल्लुफ़ होकर।
और एक मैं हूं
जो ठगा सा
खड़ा हूं
अब भी उन्हीं वीरानों में,
याद है तुम्हें वो वीराने
जहां गुनगुनी धूप
सरसराती हवा
अक्सर हमसे लिपट जाया करती थी,
जब हम,
घंटों एक दूजे के आगोश में
लिपटे रहते थे वहां,
और शरारती सन्नाटा
निहारता रहता था हमें
चुपके से,
यहां अब भी गहरा सन्नाटा पसरा हुआ है,
और मैं,
अब भी यहीं खड़ा हूं,
तुम जहां छोड़ गई थी मुझे,
अपनी यादों के सहारे।
