STORYMIRROR

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

4  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

आवाज ना दो

आवाज ना दो

1 min
251

प्रिय छोड़ जाना मेरे हिस्से की धूप

जिसमें देख सकूं तेरा वही रूप।


पता नहीं किसका साया साथ होगा

मगर तेरी यादों का तोहफा पास होगा। 


एकदम भा गया चुपके चुपके आना तेरा

गुजरते कदमों के संग गया सुकून मेरा।


चाहत की बेखुदी में विभोर

हर पल नाचे मेरा मन मोर। 


आवाज ना देना लौटते राह को

बहाना मिल जाएगा मेरी चाह को। 


नन्हे दामन में लेना तू समेट

केहरी का यह अंतिम भेंट।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance