STORYMIRROR

Anshu Priya

Tragedy

4  

Anshu Priya

Tragedy

आत्मकथा

आत्मकथा

1 min
255

अभी अभी तो बचपन आया था, मैंने आज ही यह शब्द पहचाना था

कि जिम्मेदारी की रस्सी हाथ लग गई।

खोने लगी मैं इस उधेड़बुन में कि क्या सही है और क्या गलत है,

बस यूं ही बचपन हाथ से छूटता चला गया।

मन एक चिड़िया है जो ख्वाब कई देखती है,

पर मेरा मन ख्वाब में भी अपने पराए की परीक्षा देता रह गया ।

आई जवानी सोचा कुछ कर दिखाऊंगी, 

पर यह नादान रूह फरेब के दुनिया में फंसता चला गया। 

फिर उबड़ी, एक नई आस जगी, डोली उठी बारात सजी सपनों का एक घर सजा, 

सोचा अब तो यह रूह अपनी पहचान कहीं ना कहीं पा लेगी

पर तकदीर ने तो बचपन में ही इक ब्याह जिम्मेदारी से करवाई थी।

मैं ही भूल गई वह रस्सी तो अब भी मेरे हाथों में है

जितना लंबा यह जीवन बीता उतनी ही अग्नि परीक्षाएं भी गुजरी।

उम्र तो आधी बीत गई पर रूह आज भी बच्चा ही है,

खुद की खोज में आज भी अटका ही है।

जाने कब वह पल आएगा जब मैं भी खुद के लिए कुछ सोचूंगी,

अपने इस लक्ष्यहीन जीवन को खुद से कभी मिलाऊंगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy