बेटी
बेटी
नाज़ो से पलती है, लाडो कहलाती है।
बेटी जो हंसती है तो खुशियां छलकती है।
आंगन की फूलों से सुकुमारी कहलाती है,
जरा सा जो मुरझाए दिल को पिघलाती है ।
अरमानों को उसकी हम सर आंखों पर रखते हैं,
बिटिया जो कह दे हंस - हंस के दे देते हैं।
फूलों सी कोमल नन्ही सी गुड़िया है,
बेटी हमारी खुशियों की डलिया है।
मां की फटकार पिता की दुलार,
होती है इनसे बेटियां गुणवान।
