बारिश
बारिश
यूं हीं लगातार बारिश की फुहारों से भींगने के बाद जब सुखाड़ आती है तब धरती की गोद में पल रहे अंकुर भी पनपने से पहले दम तोड़ देते हैं।
वो चकाचक रौशनी जब आकर अचानक से हमारी आंखे चौंधियां जाती हैं और फिर अगले ही पल हमारा साथ छोड़ के अंधेरा कर जाती हैं तो ये आँखें भी खुलने से ऐतराज़ करने लगती हैं।
लालिमा बिखेरती ये शामें कहीं दूर से चलकर थकी - सहमी हुई इन बाहों में चैन से सोकर सदियों - सी सुकून दे जाती हो और फिर भोर कि ठंडी बेवफ़ा हवाओं के साथ बह जाती है तब ये बाहें भी पनाह से इनकार करने लगती है।
बरसों से प्यासे इस घड़े को अपने तरहथ की गहराईयों से पानी पिलाकर जब यूं ही भटकते छोड़ पंछियों - सी उड़ जाते हैं तो ये होंठ भी कपकपाने से इनकार करने लगते हैं।
यूं ही हलचल मचा कर दिल में किस्से कई पिरोकर अगले ही पल जब इन बेवाक गलियों में अनसुनी छोड़ जाते हैं तब ये धड़कन भी धड़कने से ऐतराज़ करने लगती है।
वक़्त बेवक़्त बहने वाली निर्झर -सी इन आँखों में ख्वाबों कि लड़ियां बनाकर अगले ही पल जब उनको तोड़ मोती बिखेर जाते हैं तभी ये निश्छल आँखें पलके झपकने से भी इन्कार करने लगती हैं।
