आसमां थक रहा है
आसमां थक रहा है
फैलाव दूर तक लिए
विस्तृत नजर आता
आसमां आज थक रहा है,
अपनी अतुल छाया में
सबों को बसाने की
चाह अंतर्मन में लिए
आसमां आज थक रहा है।।
विस्तार विस्तृत हो
अस्तित्व थके कभी नहीं
अगणित आश्रित पिंड हो
कंधे पर पड़े
कंधा कभी झुके नहीं
भाव धरण यह किये
आसमां आज थक रहा है।।
पथ असहज
पर निकला है वह
संघर्षरत संतोष से
संपूर्ण शक्ति कर समर्पित
सरलता से सहज हो सब
जुबां पर शब्द एक यह लिए
आसमां आज थक रहा है।।