आपराधिक सोच
आपराधिक सोच
भारतीय संस्कृति मेंआपराधिक सोच को
हम सब बहुत बुरा मानते हैं।
भारतीय सोच तो सामाजिक भाईचारा राष्ट्रीय
एकताअखंडता संप्रभुताआपसी प्रेम इंसानियत
जिंदा रहनी चाहिए कि हमेशा से रहीं हैं।
परन्तुआज कल सभीअच्छे विचारों का
परित्याग किया जा रहा हैं।
असामाजिक तत्वों द्वारा रचित भ्रमित करने वाली
धार्मिकताआडम्बरपूर्ण उल्टी पाटी पढ़ाई जा रही हैं।
धार्मिकता के आधार पर लोगों को लड़ाया जा रहा हैं।
मानवीय मुल्यों का बुरा ह्रश्र हो रहा है।
सभी उचितअनुचित बातें चल रही हैं।
लोकतंत्र ख़तरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
न्याय व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है।
प्रशासन निठल्ले लोगों से भरा पड़ा है।
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होना चाहिए।
राजनेता तों स्वहित सर्वोपरि
समझ रहे हैं।
यह बाड़ खेत को खा रहीं हैं।
देश में भूखमरी बैरोजगारी भ्रष्टचार चरम पर है।
भाई-भतीजावाद चलन में है।
देश में हर प्रकार केआपराधिक मामले बढ़ रहे हैं।
महिलाओं परअत्याचार बलात्कार हत्या जैसे
जंगन्यआपराधिक मामले बढ़ रहे हैं।
देश में आपराधिक सोच हावी हो चुकी है।
देश में आपराधिक राजनैतिक गठजोड़ हो
चुका है।
देश किआर्थिक स्थिति डांवाडोल हो चुकी हैं।
किसीभी प्रकार कि जन सुनवाई नहीं हो रही है।
देश मेंअराजकता फ़ैल रही हैं।
चोर उचक्कें भु माफिया अवैध खनन माफिया
तरह-तरह के आपराधिक माफिया डॉन पैदा हो रहें हैं।
