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V. Aaradhyaa

Crime

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V. Aaradhyaa

Crime

संसार बारूद की नाईं जल रहा है

संसार बारूद की नाईं जल रहा है

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इन दिनों यह संसार अखाड़ा जैसा बनता जा रहा है।

आज भाईचारे का हर दिया जैसे बुझता जा रहा है।।


ईर्ष्या, द्वेष का विषैला धुआं सर्वत्र फैलता जा रहा है।

इस माहौल में सांस लेना जैसे दूभर होता जा रहा है।।


हवा भी लगभग विषाक़्त चल रही है इस धरा पर।

समस्त जगत जैसे आज बारूद की नाई जल रहा है।।


सभी जीव-जन्तु किसी तरह प्रदूषण को सह रहे हैं।

एक जहर जैसा चारों तरफ विसरित हुआ जा रहा है।।


बमों के धमाके गूंजते हैं, मिसाइलें गरजतीं जा रही हैं।

लगता है कि, सघन आबादी को मिटाया जा रहा है।।


बिना किसी योजना के शामिल हैं सब अंधी दौड़ में।

किसी को भी कोई मंज़िल साफ सा नहीं दिख रहा है।।


इस दहर तो किसी को किसी पर भरोसा नहीं रहा है।

न ही कोई किसी रिश्ते में ईमानदार सा दिख रहा है।।


आओ, कोशिश करें कि प्रदूषण को कहीं दूर भगाएं।

अब पेड़ पर सिर्फ ठूँठ, सूखी पत्तियों का जमावड़ा है।।


एक बार फिर पुरज़ोर कोशिश करना पड़ेगा मिलकर।

तभी दूर होगा ये फासला जो इंसा के बीच आ रहा है।।



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