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Anubhuti Singhal

Abstract Romance

3  

Anubhuti Singhal

Abstract Romance

आपके आ जाने से!

आपके आ जाने से!

1 min
233


तरस रहे थे खुश्क लब, कई ज़मानों से...

जैसे प्यासा तरसता है...पानी के लिए मयखानों में!

आ गयी मौसिक़ी...बे लफ़्ज़ हो चले हो चले होठों पे...

आपके आ जाने से!

देख रही थी रास्ता, बेबस नज़रें कितने ठिकानों से...

जैसे बेसब्र राही देखता है रास्ता वीरानों में!

चमकने लगे सितारे...बे रोशन हो चली निगाहों में...

आपके आ जाने से!


दुख रही थी कलाइयां, कितने सालों से...

जैसे उठे हुए हों हाथ... सदियों से दुआओं में!

मिल गया सुकून...पथराई हुई बाहों को..

आपके आ जाने से!

थकने लगे थे कदम, चलते चलते कई निशानों पे..

रुक के ढूंढ रहे थे आराम कहीं बागानों में!

थिरकने लगा रक़्स...जड़ हो चुके पैरों में...

आपके आ जाने से!


दिल की कश्ती डूबती जा रही थी, गम के मझधारों में!

किनारा मिला मेरी गुम हो चली नाव को...

आपके आ जाने से!

बुझती हुई शमा फिर परवान चढ़ गयी चिरागों में...

दीया बन गया चाँद सुनसानों में!

पतझड़ हो चुकी ज़िन्दगी जाने कब तबदील हो गयी

बहारों में!

थमी हुयी धड़कने फिर साँस लेने लगी सीने में!

आ गयी जान में जान...आपके आ जाने से!


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