ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में
ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में
ज़िन्दगी तुझे तो बस
ख़्वाब मे ही देखा हमने!"
"ताबीर-ए-ख़्वाब क्या है"
लगा दिल पूछने...
दीदार-ए-यार हुआ,
तब लगे दिल को थामने…
उनका अक्स ही तो नज़रबंद
किया था निगाहों ने…
ख़्वाब नही हक़ीहत है ये…
चले दिल-ए-नादाँ को बताने…
आखिर आए थे वो
ज़िन्दगी बन कर हमारे सामने!

