ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में
ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में
वैसे रोशनी को तो सिर्फ चांद में ही पाया हमने
मिटा दी रात की स्याही बस उसकी किरण से हमने
फ़लक को तो बस ज़मी से देखा हमने
पंखों को हाँ कभी लगाम न दी हमने
ज़रूर गुलों को तो बस शूलों के संग देखा हमने
गुलिस्तां को पर कभी इल्ज़ाम ना दिया हमने!
वक़्त की क़ैद में तो खुद को सदा पाया हमने
हसरतों पर लेकिन पहरा ना बैठाया हमने!
यूँ ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में ही देखा हमने
चंद लम्हें जी लिए फिर भी उसी पल में हमने !
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ज़िन्दगी तुझे तो बस ख्वाब में ही देखा हमने
क्या ताबीर है इस ख्वाब की, लगा दिल पूछने
दीदार-ए-यार हुआ, तब लगे दिल को थामने
उनका अक्स ही तो नज़रबंद किया था निगाहों ने
ख्वाब नहीं हक़ीहत है चले दिल-ए-नादाँ को बताने
वो आये थे ज़िन्दगी बन कर हमारे सामने !