देखते रहे...
देखते रहे...
ना आया जो, उस पैग़ाम की राह देखते रहे
निगाहें तरस गईं अश्क़ों का अंबार देखते रहे !
ना मिला जो, वो जवाब देखते रहे
तारीख निकल गई बेहिसाब सवाल देखते रहे !
हुक्म के गुलाम थे शामोसहर
फरमान की तामिल देखते रहे !
बीच दरिया मे माँझी का इंतजार देखते रहे
कश्ती डूब गई ज़बरदस्त सैलाब देखते रहे !
आँखें खुल गईं टूटे हुए ख्वाब देखते रहे
हबीब करीब सब निकल गए अपने रास्ते
कदम हमारे खड़े खड़े तेज़ रफ़्तार देखते रहे !
कारवाँ गुज़र गया गुब्बार देखते रहे !
