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Anubhuti Singhal

Abstract Tragedy

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Anubhuti Singhal

Abstract Tragedy

देखते रहे...

देखते रहे...

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ना आया जो, उस पैग़ाम की राह देखते रहे

निगाहें तरस गईं अश्क़ों का अंबार देखते रहे !


ना मिला जो, वो जवाब देखते रहे

तारीख निकल गई बेहिसाब सवाल देखते रहे !


हुक्म के गुलाम थे शामोसहर

फरमान की तामिल देखते रहे !


बीच दरिया मे माँझी का इंतजार देखते रहे

कश्ती डूब गई ज़बरदस्त सैलाब देखते रहे !


आँखें खुल गईं टूटे हुए ख्वाब देखते रहे

हबीब करीब सब निकल गए अपने रास्ते


कदम हमारे खड़े खड़े तेज़ रफ़्तार देखते रहे !

कारवाँ गुज़र गया गुब्बार देखते रहे !


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