आखिरी इजहार
आखिरी इजहार
मन सपनों में चूर था, दिल बेजार था |
अंगड़ाई लेने लगा सुनहरा प्यार था ||
मिल कर भी, कुछ कह ना सके हम |
बहुत लाजवाब आखिरी इजहार था ||
इस कदर यकीन था, ख्बाबों पर अपने |
नजर औ पलकों दोनों का इकरार था ||
लिखी थीं, नसीब में कुछ दूरियां अपने;
वर्ना तू पहला और आखिरी करार था ||
मसरूफियत रही, तमाम उलझनों की |
कभी बन्दिगी में, दिल भी निसार था ||